AIIMS गोरखपुर ने किया ब्रेन डेड डोनर से Achilles टेंडन प्रत्यारोपण, क्षेत्र में पहली बार

AIIMS गोरखपुर में ऐतिहासिक सर्जरी: Achilles टेंडन ट्रांसप्लांट से महिला को दोबारा मिली चाल
गोरखपुर के AIIMS में ऐसा कारनामा हुआ है, जिसकी चर्चा पूरे पूर्वांचल ही नहीं, पूरे देश में हो रही है। यहां डॉक्टर्स ने पहली बार ब्रेन डेड डोनर के Achilles टेंडन प्रत्यारोपण की सर्जरी की और 40 वर्षीय महिला को फिर से अपने पैरों पर खड़ा कर दिया। यह उपलब्धि मेडिकल साइंस के इतिहास में मील का पत्थर बन गई है।
गौरिबाजार, गोरखपुर की रहने वाली इस महिला को कई सालों से दोनों पैरों में जबरदस्त सूजन और दर्द की परेशानी थी। लगातार इलाज के बावजूद उनकी हालत सुधर नहीं रही थी। जांच के बाद पता चला कि उसकी ऐड़ी के ऊपर मौजूद Achilles टेंडन में ट्यूमर हो गया है—यानी उस मजबूत टिशू में गांठ बन गई थी जो पैरों को मूवमेंट देने का अहम रोल निभाता है। ऐसे में सर्जनों को मजबूरी में ऑपरेशन कर उसकी बायीं टांग का पूरा Achilles टेंडन निकालना पड़ा।
फिर शुरू हुए मुश्किल के दिन, महिला के लिए चलना-फिरना तो जैसे नामुमकिन हो गया। टेंडन के बिना पैर ठीक से हिल ही नहीं रहा था। रोजमर्रा के छोटे-बड़े काम, यहां तक कि सीढ़ियां चढ़ना-उतरना भी चुनौती बन गया। लेकिन इसी दौरान AIIMS गोरखपुर की सर्जिकल टीम ने तय किया कि वे देश की मेडिकल तकनीक में नया इतिहास रचेंगे।
ब्रेन डेड डोनर से मिला जीवन: मेडिकल टीम की खास रणनीति
Achilles टेंडन की ट्रांसप्लांट सर्जरी आसान नहीं होती। सबसे पहले जरूरत थी कि डोनर टेंडन मिले—जो बिना किसी नुकसान के लगाया जा सके। ऐसे में ब्रेन डेड डोनर की टेंडन को सुरक्षित निकालने, स्टोर करने और फिर पूरी सतर्कता से महिला में प्रत्यारोपित करने में टीम को कई घंटे तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी।
यह प्रक्रिया न केवल तकनीकी रूप से कठिन थी, बल्कि देशभर में ऐसी मिसालें भी बहुत कम हैं। आमतौर पर ब्रेन डेड डोनर से अंग प्रत्यारोपण जैसे लीवर, हार्ट या किडनी ट्रांसप्लांट तो होते रहे हैं, लेकिन मस्कुलोस्केलेटल टिशू यानी हड्डी, लिगामेंट या टेंडन का प्रत्यारोपण इस इलाके में पहली बार हुआ। गुरुवार को टीम ने सफलतापूर्वक सर्जरी की और महिला के पैर में डोनर का Achilles टेंडन लगाया। अब वो धीरे-धीरे चलना सीख रही हैं और उम्मीद की किरण लौट आई है।
डॉक्टर्स की टीम ने बताया कि यह सर्जरी उन तमाम मरीजों के लिए नई राह है, जिन्हें ट्यूमर या दुर्घटना के बाद टिशू लॉस या डैमेज से चलने में परेशानियां होती हैं। इस केस में ब्रेन डेड डोनर की बदौलत एक महिला को न सिर्फ नई चाल, बल्कि नया जीवन भी मिला है।
ऐसी उपलब्धि से न सिर्फ Gorakhpur, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के मेडिकल सेक्टर को नई पहचान मिली है। डॉक्टर्स ने साथ ही लोगों को अंग और टिशू डोनेशन के लिए जागरूक करने का संदेश भी दिया। भविष्य में इसी तरह की और सफल ट्रांसप्लांट सर्जरी की उम्मीद जग गई है।