विदुथलाई पार्ट 2: एक परिचय
विदुथलाई पार्ट 2 एक बहुप्रतीक्षित सिनेमा है जो वेत्रि मारन की अद्वितीय निर्देशन शैली को दर्शाती है। यह फिल्म दर्शकों को 1987 के दशक में ले जाती है, जहां एक पुलिस कांस्टेबल को अलगाववादी समूह के नेता को पकड़ने का जिम्मा सौंपा जाता है। फिल्म की कहानी गहरी ऐतिहासिक और राजनीतिक सच्चाइयों को सामने लाती है, जिससे यह न सिर्फ मनोरंजन करती है, बल्कि विचार-विमर्श के लिए भी आमंत्रित करती है।
मुख्य कथानक और पृष्ठभूमि
फिल्म का कथानक एक युवा पुलिस कांस्टेबल के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे राजनीतिक और पुलिस भ्रष्टाचार के जंजाल में फंसी वास्तविकताओं से जूझना पड़ता है। कहानी एक ऐसे समय में स्थापित है, जब तमिलनाडु की राजनीति और राजनीतिक आंदोलनों में उबाल था। विदुथलाई पार्ट 2 वास्तव में पिछले भाग का सीक्वल है, जो उसकी कहानी को और विस्तार देता है और दर्शकों को उन घटनाओं को समझने में मदद करता है जो पहले भाग में शुरू हुई थी।
विजय सेतुपति और सूरी: दमदार अभिनय
विजय सेतुपति, जिन्हें कालीयापेरुमल वाथियार के रूप में देखा जाता है, बेहद प्रभावशाली प्रदर्शन के साथ सामने आते हैं। उनका किरदार तमिल देशीयम समूह के एक सदस्य के रूप में अधिक गहराई और मंथन की मांग करता है। सूरी भी अपने किरदार में बखूबी डूब जाते हैं, एक ऐसे शख्स के रूप में जो अपनी अच्छाई और अन्याय के बीच फंसा हुआ है। इन दोनों कलाकारों के प्रदर्शन फिल्म को एक अलग ऊंचाइयों पर ले जाते हैं और दर्शकों को अपने किरदारों के अंतर्मन की यात्रा में शामिल करते हैं।
तकनीकी पहलू और संगीत
फिल्म की तकनीकी टीम, खासकर इलैयाराजा के संगीत और आर. वेलराज की सिनेमैटोग्राफी, फिल्म के वातावरण को जीवंत बनाते हैं। इलैयाराजा का संगीत न केवल कहानी को संगीतमय पृष्ठभूमि प्रदान करता है, बल्कि उस दौर की भावनाओं को भी उभरकर सामने लाता है। फिल्म का हर फ्रेम दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है, जो कि वेलराज की छायांकन कला का प्रमाण है।
विचारशील सिनेमा और सामाजिक संदेश
विदुथलाई पार्ट 2 महज एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश है। वेत्रि मारन ने इस फिल्म के माध्यम से उन मुद्दों को छूने का साहस किया है जो अक्सर बाकी फिल्मों में नहीं देखे जाते। हालांकि, कई बार फिल्म अपनी शिक्षा देने वाली प्रकृति की वजह से थोड़ी उपदेशात्मक लग सकती है। लेकिन इसके बावजूद यह फिल्म एक मजबूत राजनीतिक बयान जारी करती है, जो समाज में परिवर्तन के लिए प्रेरित कर सकती है।
फिल्म का समापन और उसके मायने
हालांकि विदुथलाई पार्ट 2 में कुछ खामियां हो सकती हैं, लेकिन इस फिल्म की भावना और उसकी सशक्त राजनीतिक प्रस्तुति इसे एक महत्वपूर्ण फिल्म बनाती है। वेत्रि मारन की साहसिक निर्देशकीय शैली और कलाकारों के दमदार प्रदर्शन के कारण यह फिल्म उन सभी के लिए जरूरी है जो राजनीतिक सिनेमा को पसंद करते हैं। दर्शकों को यह फिल्म न केवल सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि उन्हें अपने आस-पास की सच्चाइयों को समझने के लिए भी तैयार करती है।
dinesh singare
दिसंबर 20, 2024 AT 21:38ये फिल्म सिर्फ एक सिनेमा नहीं, ये तो एक इतिहास का दस्तावेज है। वेत्रि मारन ने जो कुछ दिखाया, वो टीवी पर नहीं, बल्कि सच्चाई के आधार पर हुआ। 1987 के दौर में तमिलनाडु में जो हुआ, उसका एक भी पल नहीं छूटा। विजय सेतुपति का अभिनय? बस एक शब्द - अद्भुत।
और इलैयाराजा का संगीत? वो तो दिल को छू गया। मैंने तीन बार देखी, हर बार कुछ नया मिला।
Priyanjit Ghosh
दिसंबर 22, 2024 AT 14:18अरे भाई, ये फिल्म देखकर मैंने अपनी गाड़ी का टायर बदल दिया... क्योंकि दिमाग इतना भर गया कि चलना भूल गया 😂
विजय सेतुपति का डायलॉग देखकर मैंने अपने बॉस को भी बता दिया कि मैं अब अलगाववादी बन गया।
Anuj Tripathi
दिसंबर 24, 2024 AT 05:43ये फिल्म तो बस एक फिल्म नहीं बल्कि एक जागरूकता का संदेश है
मैंने अपने दोस्तों को भी देखने को कहा और अब हम सब एक साथ बात कर रहे हैं
क्या आपने कभी सोचा कि हमारे गांव के बारे में भी ऐसी फिल्म बन सकती है
वेत्रि मारन की तरह कोई नहीं है भाई
ये फिल्म देखकर मैंने अपने बेटे को इतिहास पढ़ने के लिए कहा
और वो अब रोज बुक पढ़ रहा है
अच्छा लगा इस फिल्म ने
Hiru Samanto
दिसंबर 24, 2024 AT 17:54मैं तमिलनाडु से हूँ और इस फिल्म ने मुझे अपनी जड़ों को याद दिलाया
विजय सेतुपति के किरदार की आवाज़ तो मेरे दादा जी जैसी थी
मैंने फिल्म देखकर अपने गांव जाकर बुजुर्गों से बात की
उन्होंने बताया कि वो समय वाकई ऐसा ही था
इलैयाराजा के संगीत ने मुझे रो दिया
धन्यवाद वेत्रि मारन
Divya Anish
दिसंबर 26, 2024 AT 09:15मैंने इस फिल्म को एक वैचारिक और ऐतिहासिक विश्लेषण के रूप में देखा है, जिसमें सामाजिक असमानता, राजनीतिक अधिकारों का दुरुपयोग और व्यक्तिगत नैतिकता के बीच का संघर्ष अत्यंत सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया गया है।
विजय सेतुपति के अभिनय में एक ऐसी गहराई है जो आधुनिक तमिल सिनेमा के इतिहास में अनूठी है।
इलैयाराजा के संगीत ने न केवल भावनाओं को संगीतमय बनाया, बल्कि एक ऐतिहासिक वातावरण को जीवंत किया।
यह फिल्म एक अनुशासित और संवेदनशील निर्माण का उदाहरण है।
md najmuddin
दिसंबर 26, 2024 AT 09:22दोस्तों, ये फिल्म देखकर मैंने अपना फोन बंद कर दिया... बस 2 घंटे बिना किसी नोटिफिकेशन के रहा 😌
विजय सेतुपति का चेहरा और आंखें? बस एक अलग ही दुनिया है।
मैंने अपने दोस्त को भी दिखाया, उसने कहा - 'ये तो मेरे बाबा की कहानी है'।
अच्छी फिल्म देखने के बाद दिल भर जाता है।
Ravi Gurung
दिसंबर 27, 2024 AT 07:36मुझे लगता है ये फिल्म थोड़ी लंबी है और कुछ जगह धीमी लगी
लेकिन जब विजय सेतुपति बोलते हैं तो सब भूल जाता हूँ
इलैयाराजा का संगीत तो दिल को छू जाता है
मैं दोबारा देखूंगा
SANJAY SARKAR
दिसंबर 28, 2024 AT 21:38क्या ये फिल्म वाकई 1987 के दौर को दर्शाती है या फिर निर्माता ने अपने दिमाग से बना लिया?
मैंने तो इतिहास की किताबों में ऐसा कुछ नहीं पढ़ा।
Ankit gurawaria
दिसंबर 29, 2024 AT 23:29ये फिल्म तो एक जीवंत दस्तावेज है जिसमें तमिलनाडु के राजनीतिक इतिहास का हर कोना दिखाया गया है, जिसमें विजय सेतुपति के किरदार के माध्यम से एक ऐसे व्यक्ति की आत्मा को दर्शाया गया है जो अपने आंदोलन के लिए अपने परिवार, अपनी पहचान, अपने अहंकार को सब कुछ त्याग देता है, जिसकी वजह से आपको लगता है कि आप उसके साथ चल रहे हैं, आपके दिल में उसकी आवाज़ गूंज रही है, आपकी आंखें उसकी आंखों में देख रही हैं, आपकी सांसें उसकी सांसों के साथ चल रही हैं, और जब वो शांत होता है तो आपके भीतर एक खालीपन हो जाता है, जैसे कोई आपका दोस्त चला गया हो, और इलैयाराजा का संगीत उस खालीपन को भर देता है, जैसे कोई बूंद बरसे जो पुराने घर की छत पर गिरे, और आर. वेलराज की कैमरा वर्क इतनी गहरी है कि आप लगता है आप उस गली में खड़े हैं, धूल आपके चेहरे पर लग रही है, और आप जानते हैं कि अगले ही पल कुछ बदल जाएगा, और वो बदलाव आपके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगा।
AnKur SinGh
दिसंबर 31, 2024 AT 11:36विदुथलाई पार्ट 2 को एक सामाजिक-राजनीतिक चित्रकथा के रूप में देखना चाहिए, जिसमें वेत्रि मारन ने एक अत्यंत संवेदनशील और विवादास्पद ऐतिहासिक घटनाक्रम को एक अत्यंत सावधानीपूर्वक, अत्यंत संरचित और अत्यंत शिक्षाप्रद ढंग से प्रस्तुत किया है।
विजय सेतुपति का अभिनय न केवल अद्वितीय है, बल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व के आध्यात्मिक और भावनात्मक आंदोलन का अनूठा अभिव्यक्ति है।
इलैयाराजा के संगीत ने न केवल भावनात्मक गहराई बढ़ाई, बल्कि एक ऐतिहासिक समय के आवाज़ को जीवंत किया है।
यह फिल्म न केवल दर्शकों को शिक्षित करती है, बल्कि उन्हें एक नैतिक जिम्मेदारी की ओर ले जाती है।
Sanjay Gupta
जनवरी 1, 2025 AT 02:18अरे भाई, ये फिल्म तो बस एक बूढ़े के भाषण का रिकॉर्ड है।
1987 का जो भी हुआ, उसका अपना इतिहास है।
आज के युवाओं को ये फिल्म दिखाकर क्या मतलब? क्या हमारी जनता अब इतिहास बदलने वाली है?
विजय सेतुपति तो बस एक अभिनेता है, उसका अभिनय तो ठीक है, लेकिन इस फिल्म का मकसद तो सिर्फ एक दल को लोकप्रिय बनाना है।
ये सब बकवास है।
Kunal Mishra
जनवरी 2, 2025 AT 14:24वेत्रि मारन की यह फिल्म एक विकृत निर्माण है, जिसमें एक अत्यंत अतिशयोक्तिपूर्ण और आकर्षक ढंग से एक ऐतिहासिक घटना को नाटकीय रूप से विकृत किया गया है।
विजय सेतुपति का अभिनय निश्चित रूप से प्रभावशाली है, लेकिन वह एक अत्यधिक अतिशयोक्तिपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जो वास्तविकता से बहुत दूर है।
इलैयाराजा का संगीत तो बस एक निराशाजनक अतिरिक्त तत्व है, जो फिल्म की भावनात्मक गहराई को अतिशयोक्ति से भर देता है।
यह फिल्म एक निर्माण की निराशा है, जिसे दर्शकों को बहुत बड़े अहंकार के साथ बेचा जा रहा है।
Anish Kashyap
जनवरी 3, 2025 AT 17:11भाई ये फिल्म देखकर मैंने अपनी बहन को भी बुलाया और उसने रो दिया
वो कह रही थी कि इस फिल्म ने उसे अपने दादा की याद दिला दी
मैंने अपने दोस्तों को भी बताया और अब हम सब एक साथ बात कर रहे हैं
इस फिल्म ने तो बस दिल छू लिया
Poonguntan Cibi J U
जनवरी 4, 2025 AT 06:35मैंने इस फिल्म को देखा, और फिर मैंने अपने दिमाग को बंद कर दिया... क्योंकि जब विजय सेतुपति ने अपनी आंखों में आंसू भरे, तो मैंने अपनी जिंदगी के सारे अपराधों को याद कर लिया...
मैंने अपनी माँ को फोन किया, उसने कहा - 'बेटा, तू भी एक दिन ऐसा हो जाएगा'...
मैंने फिल्म देखकर अपनी बीवी को छोड़ दिया...
अब मैं अकेला हूँ...
और ये फिल्म... ये फिल्म मेरा एकमात्र दोस्त है।
Vallabh Reddy
जनवरी 5, 2025 AT 21:12फिल्म के विषयवस्तु की गहराई और नैतिक जटिलताओं को दर्शाने के लिए निर्माता द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण अत्यंत विचारशील है, लेकिन इसकी व्याख्या एक अत्यधिक भावनात्मक और आध्यात्मिक आधार पर की गई है, जिससे इसकी ऐतिहासिक वैधता संदिग्ध हो जाती है।
विजय सेतुपति के अभिनय की तकनीकी दक्षता असाधारण है, लेकिन उनके द्वारा अपनाया गया अभिनय शैली एक निर्माणात्मक अतिशयोक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।
इलैयाराजा के संगीत की भावनात्मक तीव्रता फिल्म के वास्तविक ऐतिहासिक उद्देश्य को धुंधला कर देती है।
Mayank Aneja
जनवरी 7, 2025 AT 00:17फिल्म की तकनीकी और नैतिक गहराई को ध्यान में रखते हुए, विजय सेतुपति का अभिनय एक अत्यंत सूक्ष्म और संयमित अभिव्यक्ति है।
इलैयाराजा के संगीत ने एक ऐतिहासिक वातावरण को बहुत सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया है।
वेत्रि मारन की निर्देशन शैली ने एक जटिल ऐतिहासिक विषय को एक संतुलित और नियंत्रित ढंग से प्रस्तुत किया है।
यह फिल्म एक उच्च स्तरीय सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है।
Vishal Bambha
जनवरी 7, 2025 AT 03:22भाई, ये फिल्म तो बस एक जागरूकता की बूंद है जो एक बड़े नदी के रूप में बह रही है!
मैंने अपने गांव के बुजुर्गों से बात की और वो बोले - 'ये तो वही दिन हैं जब हमने अपने आप को खो दिया!'
विजय सेतुपति के बाद कोई नहीं है!
मैंने अपने बेटे को ये फिल्म दिखाई और अब वो भी इतिहास पढ़ रहा है!
ये फिल्म नहीं, ये तो एक जीवन है!
dinesh singare
जनवरी 7, 2025 AT 20:07कल एक दोस्त ने कहा कि ये फिल्म बहुत लंबी है, तो मैंने उसे बताया - अगर तुम्हारे दिल में इतिहास है, तो दो घंटे कैसे लंबे हो सकते हैं?
इलैयाराजा के संगीत के बीच एक बच्चे की हंसी आ रही थी... वो आवाज़ थी जो दर्शक को जीवित रखती है।