बांग्लादेशी फिल्म उद्योग इस वक़्त एक गहरे संकट में है। अभिनेता शांतो खान और उनके पिता, प्रसिद्ध निर्माता और निर्देशक सलीम खान की दर्दनाक हत्या ने सभी को सन्न कर दिया है। यह दुखद घटना चांदपुर में सोमवार, 5 अगस्त 2024 को घटित हुई, जब एक हिंसक भीड़ ने उन्हें निशाना बना लिया। यह घटना बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद उत्पन्न हुई बड़े पैमाने पर अशांति और हिंसात्मक जनप्रदर्शन के बीच घटी।
सलीम खान, जिन्हें शापला मीडिया के मालिक के रूप में जाना जाता है, पहले आवामी लीग के सक्रिय सदस्य थे, लेकिन बाद में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। सलीम ने कई सफल फिल्मों का निर्माण किया था, जिनमें 'तुंगी पारार मिया भाई', बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान पर आधारित बायोपिक, और 'कमांडो' जिसमें देवनायायक थे, शामिल हैं। शांतो खान ने फिल्म 'प्रेम चोर' में 2019 में अपने करियर की शुरुआत की थी और क्रमशः 'पिया रे' (2021), 'बिखोब' (2022), 'बुबोजान' (2023), और 'अंतो नगर' (2024) जैसी फिल्में की थीं।
घटना का विवरण और संदर्भ
सुबह के समय, शांतो और उनके पिता ने अपनी जान बचाने के लिए अपने गांव से भागने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की खबर फैली हुई थी और देशभर में लोग भारी संख्या में प्रदर्शन कर रहे थे। हालाँकि, खबर फैलते ही एक उत्तप्त भीड़ ने बगराबाजार इलाके में उन्हें घेर लिया और उन पर हमला कर दिया। इस हमले में शांतो और सलीम दोनों की मृत्यु हो गई।
बांग्लादेश की फिल्म इंडस्ट्री और विशेषकर कोलकाता के फिल्म साथियों ने इस खबर पर गहरा शोक व्यक्त किया है। कई अभिनेताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं और इस घटनाक्रम पर दुख जताया है। शांतो खान एक उभरते हुए अभिनेता थे और फिल्म उद्योग में उनकी बड़ी संभावनाएँ थीं, लेकिन इस घटना ने उन सभी संभावनाओं को खत्म कर दिया।
देश में संकट और राजनीतिक अस्थिरता
शेख हसीना के इस्तीफे के बाद से बांग्लादेश में जारी हिंसात्मक जनप्रदर्शन और अस्थिरता ने पूरे देश को प्रभावित किया है। प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद संसदीय प्रणाली को समाप्त कर दिया गया है और अब नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद युनूस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाने की तैयारी हो रही है। शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, इस अस्थिरता में अब तक 400 से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं।
फिल्म उद्योग में शोक की लहर
सलीम खान और उनके बेटे की हत्या ने बांग्लादेशी और भारतीय, विशेषकर कोलकाता के, फिल्म उद्योग को हिलाकर रख दिया है। फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं, और फिल्मी प्रशंसकों ने अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं। सलीम खान ने अपने जीवनकाल में कई यादगार फिल्में बनाईं जो आज भी फिल्म प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं। शांतो खान, जो अपने पिता के अनुकरणीय पदचिन्हों पर चल रहे थे, का बुजुर्ग अवस्था में निधन ने सभी को शोकमग्न कर दिया है।
शांति और समृद्धि की उम्मीद और कामना करती है कि बांग्लादेश जल्द ही इस संकट से उबर सके और इन नृशंस हत्याओं का उचित न्याय हो। इस घटना ने एक और महत्वपूर्ण भालूरेंकन की आवश्यकता को उजागर किया है कि कैसे सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता मानव जीवन पर भीषण असर डाल सकती है।
Ron DeRegules
अगस्त 10, 2024 AT 10:11ये बात तो बहुत दर्दनाक है भाई साहब। शांतो और सलीम खान दोनों ने बांग्लादेशी सिनेमा को अपनी मेहनत से ऊपर उठाया था। शांतो की अभिनय शैली तो बिल्कुल नई थी और सलीम जी के फिल्मों में वो राष्ट्रीय भावना थी जो आज के ट्रेंडी फिल्मों में गायब है। अब जब वो नहीं रहे तो लगता है जैसे किसी ने हमारी जड़ों को काट दिया हो। इस तरह की हिंसा कभी नहीं होनी चाहिए थी। फिल्म उद्योग अब बस बॉक्स ऑफिस की बात कर रहा है और मानवता की बात भूल गया है।
कल्पना करो अगर ये घटना बॉलीवुड में होती तो क्या होता? देश रुक जाता। लेकिन यहां लोग बस शेयर कर रहे हैं और आगे नहीं बढ़ रहे। ये बस एक फिल्म नहीं है ये एक संस्कृति का अंत है।
Manasi Tamboli
अगस्त 11, 2024 AT 06:02क्या तुमने कभी सोचा है कि ये हत्याएं सिर्फ राजनीति की नहीं बल्कि हमारे अंदर के डर की छवि हैं? जब हम एक व्यक्ति को अपने विचारों के खिलाफ देखते हैं तो हम उसे मार डालते हैं। शांतो और सलीम को बस इसलिए मारा गया क्योंकि वो अलग थे। वो अपनी फिल्मों में सच बोलते थे। और सच को मार देना ही आज का राष्ट्रीय खेल बन गया है।
हम सब जीवित हैं लेकिन हमारे दिल मर चुके हैं।
Ashish Shrestha
अगस्त 11, 2024 AT 18:40इस घटना को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि शांतो खान एक मध्यम स्तरीय अभिनेता थे और सलीम खान एक अप्रचलित निर्माता थे। उनकी मृत्यु का राजनीतिक अर्थ नहीं है, बल्कि यह एक सामान्य जनहिंसा का उदाहरण है। यह घटना अप्रासंगिक है और इसे ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।
Mallikarjun Choukimath
अगस्त 13, 2024 AT 05:46अरे भाई, ये तो एक निर्माता और उसके पुत्र की मृत्यु नहीं, ये तो एक जीवन कला का अंत है। शांतो खान के अभिनय में एक ऐसी निर्मलता थी जो आज के बॉक्स ऑफिस ड्रामा में अनुपलब्ध है। उनके पिता सलीम खान ने बांग्लादेशी सिनेमा को एक ऐसे स्तर तक पहुंचाया जहां वह अपने विचारों के साथ नाटकीय वास्तविकता को दर्शाते थे।
हम आज जो फिल्में देख रहे हैं, वो बस एक विज्ञापन हैं, जहां भावनाएं बेची जा रही हैं। शांतो ने भावनाओं को जीवित किया। उनकी मृत्यु ने एक निर्माण की आत्मा को नष्ट कर दिया। और हम? हम तो बस एक लाइक देकर अपनी अपराधभावना शामिल कर लेते हैं।
Sitara Nair
अगस्त 14, 2024 AT 16:48ये बहुत दुखद है 😢 शांतो और सलीम जी के बारे में सुनकर मेरा दिल टूट गया। उनकी फिल्में मैंने बचपन में देखी थीं, खासकर 'तुंगी पारार मिया भाई' - वो फिल्म तो मेरी माँ भी रो रही थी जब देखी। 🙏
मुझे लगता है कि ये बस एक फिल्म उद्योग की बात नहीं है, ये तो हमारे सामाजिक दिल की बात है। हम अपने लोगों को अपने भावों के लिए मार रहे हैं। अगर हम इस तरह जारी रखेंगे तो फिल्में नहीं, इंसान भी गायब हो जाएंगे।
मैं शांति की कामना करती हूँ। 🕊️💛
Abhishek Abhishek
अगस्त 15, 2024 AT 00:52लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि शांतो खान असल में उनके पिता के राजनीतिक विचारों का हिस्सा थे? क्या वो भी आवामी लीग के लिए फिल्में बना रहे थे? अगर हां तो ये हत्या उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि का परिणाम है। नहीं तो इतनी भीड़ कैसे उन पर हमला करती? ये बस एक नाटक है जो लोगों को भ्रमित करने के लिए बनाया गया है।
Avinash Shukla
अगस्त 16, 2024 AT 10:42मैं इस घटना को बहुत गंभीरता से लेता हूँ। शांतो और सलीम खान के बारे में सुनकर मुझे अपने दादाजी की याद आ गई। वो भी फिल्मों के बारे में बहुत बात करते थे।
हम सब यहां इस बात पर बहस कर रहे हैं कि ये क्या हुआ, लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि अगर हम अपने आसपास के लोगों को ज्यादा समझते तो ऐसी बातें होतीं? शायद इस तरह की हिंसा कभी नहीं होती।
मैं उनके परिवार के लिए श्रद्धांजलि देता हूँ। 🙏
Harsh Bhatt
अगस्त 18, 2024 AT 06:40अब तो हर कोई अपनी फिल्म के नाम से इतिहास बनाने की कोशिश कर रहा है। शांतो खान का कोई विशेष योगदान नहीं था। उनकी फिल्में बस एक निर्माता के बेटे के नाम से बनी थीं। सलीम खान के बारे में तो बात ही नहीं होनी चाहिए, उनकी फिल्में तो अब भी बेची जा रही हैं और उनका नाम अभी भी ट्रेंड में है। ये सब बस एक ट्रेंड है।
dinesh singare
अगस्त 19, 2024 AT 12:34ये बात बहुत बड़ी है और ये बस एक फिल्म उद्योग की बात नहीं है। ये बांग्लादेश की आत्मा की बात है। शांतो खान के अभिनय में एक ऐसा जज्बा था जो आज के ट्रेंडी अभिनेताओं में नहीं है। उन्होंने अपने जीवन में फिल्मों को जीवन बना दिया। और अब? अब हम उनकी मृत्यु के बाद उनकी फिल्मों को देखकर रो रहे हैं।
ये दर्द बस एक अभिनेता का नहीं, ये एक पूरी पीढ़ी का दर्द है।
Priyanjit Ghosh
अगस्त 20, 2024 AT 02:46ओहो तो अब फिल्म बनाने वाले भी नहीं बचे? 😂 लोगों को लगता है जैसे फिल्म उद्योग का अंत हो गया। बस एक बार देखो बॉलीवुड में कितने नए नाम आ रहे हैं। ये तो बस एक ट्रेंड है। जब तक हम अपने दिलों में नहीं बदलाव लाएंगे, तब तक ये बातें चलती रहेंगी।
मैं तो अपनी फिल्म बनाने वाला हूँ। तुम बस देखोगे। 😎
Anuj Tripathi
अगस्त 21, 2024 AT 11:40दोस्तों ये बहुत बुरी बात है लेकिन जिंदगी जारी है। शांतो और सलीम जी की यादों को हम हमेशा रखेंगे। अब बाकी लोगों को भी अपना काम जारी रखना चाहिए। फिल्म उद्योग को नहीं तो कम से कम अपने घर में शांति बनानी चाहिए।
हम सब एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं। ये बस एक शुरुआत है।
Hiru Samanto
अगस्त 21, 2024 AT 18:58मुझे लगता है शांतो खान एक बहुत अच्छा अभिनेता थे। उनकी फिल्में मैंने देखी हैं। उनका अभिनय बहुत अच्छा था। मैं उनके परिवार के लिए दुखी हूँ। इस तरह की घटनाएं बहुत दुखद हैं।
Divya Anish
अगस्त 22, 2024 AT 05:17यह घटना न केवल बांग्लादेशी सिनेमा के लिए बल्कि मानवता के लिए एक भयानक आघात है। शांतो खान के अभिनय में एक अद्वितीय निर्मलता थी जो आज के ट्रेंडी अभिनेताओं में अनुपलब्ध है। सलीम खान के निर्देशन में एक ऐसी गहराई थी जो आज के फिल्म निर्माताओं ने भूल दी है।
यह घटना न केवल एक अभिनेता के निधन का वर्णन नहीं करती, बल्कि एक सांस्कृतिक अंत का भी वर्णन करती है। जब राजनीतिक अस्थिरता नाटकीय कला को नष्ट कर देती है, तो यह एक समाज के लिए एक गहरा चोट का संकेत है। हमें इस घटना को एक शिक्षा के रूप में लेना चाहिए।
md najmuddin
अगस्त 24, 2024 AT 01:45मैं शांतो और सलीम खान के लिए श्रद्धांजलि देता हूँ। उनकी फिल्में मैंने अपने दादाजी के साथ देखी थीं। वो बहुत खुश होते थे जब वो उन फिल्मों को देखते थे।
मुझे लगता है कि हमें अपने संस्कृति को बचाना चाहिए। फिल्में बस फिल्में नहीं हैं, ये हमारी जड़ें हैं।
Ravi Gurung
अगस्त 24, 2024 AT 22:58मुझे लगता है ये बहुत दुखद है। शांतो खान की फिल्में मैंने देखी हैं। उनका अभिनय अच्छा था। मैं उनके परिवार के लिए दुखी हूँ।
SANJAY SARKAR
अगस्त 26, 2024 AT 16:26क्या ये असली है? क्या शांतो खान असल में बांग्लादेशी फिल्म उद्योग के लिए इतना महत्वपूर्ण थे? क्या ये फिल्में असल में इतनी लोकप्रिय थीं? मुझे तो ये सब नया लग रहा है।
Ankit gurawaria
अगस्त 26, 2024 AT 21:07इस घटना के बारे में सोचकर मेरा दिल टूट गया। शांतो खान ने बांग्लादेशी सिनेमा को एक नए आयाम में ले आया। उनकी फिल्में बस एक बात नहीं थीं, वो एक भावना थीं। उनके पिता सलीम खान ने उन्हें न सिर्फ फिल्म बनाना सिखाया, बल्कि जीवन जीना भी।
आज के दौर में जब फिल्में बस बॉक्स ऑफिस की बात करती हैं, तो शांतो खान की याद एक निर्मल बूंद है। उनकी मृत्यु ने एक ऐसा दर खोल दिया जो भरना असंभव है।
हम जो भी करें, उनकी याद को जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है।
AnKur SinGh
अगस्त 28, 2024 AT 02:18शांतो खान और सलीम खान की मृत्यु केवल एक फिल्म उद्योग का नुकसान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आधार का नुकसान है। शांतो के अभिनय में एक ऐसी निर्मलता थी जो आज के ट्रेंडी अभिनेताओं में अनुपलब्ध है। उनके पिता सलीम खान ने बांग्लादेशी सिनेमा को एक ऐसे स्तर तक पहुंचाया जहां वह अपने विचारों के साथ नाटकीय वास्तविकता को दर्शाते थे।
हम आज जो फिल्में देख रहे हैं, वो बस एक विज्ञापन हैं, जहां भावनाएं बेची जा रही हैं। शांतो ने भावनाओं को जीवित किया। उनकी मृत्यु ने एक निर्माण की आत्मा को नष्ट कर दिया। और हम? हम तो बस एक लाइक देकर अपनी अपराधभावना शामिल कर लेते हैं।
यह घटना हमें एक बार फिर याद दिलाती है कि कला के लिए शांति कितनी आवश्यक है।
Sanjay Gupta
अगस्त 29, 2024 AT 01:13ये सब बस एक बांग्लादेशी फिल्म उद्योग की बात है। हम भारतीयों को इसमें क्या लेना-देना है? इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देकर हम अपने देश की छवि खराब कर रहे हैं। इस बात पर ध्यान न दें और अपने देश के लिए काम करें।
Manasi Tamboli
अगस्त 30, 2024 AT 06:28अगर तुम इस घटना को बस एक राजनीतिक उत्पाद के रूप में देख रहे हो, तो तुम्हारी आत्मा कभी नहीं जागेगी। शांतो और सलीम के बारे में सोचो। उन्होंने अपनी फिल्मों में एक ऐसा सच बोला जो तुम्हारी आंखों को चुभ गया।
तुम उनकी मृत्यु को राजनीति का नतीजा कह रहे हो, लेकिन ये तो तुम्हारी निष्क्रियता का नतीजा है।