ज्येष्ठ अभिनेत्री संध्या शांताराम का निधन, 94 साल में मुंबई में

जब संध्या शांताराम, वयोवृद्ध अभिनेत्री और वी. शांतराम को 4 अक्टूबर 2025 को मुंबई में निधन की सूचना मिली, तो सिनेमा जगत को एक बड़ी धूमिल छाया ने घेर लिया। 94 साल की आयु में ‘पुरानी उम्र’ को कारण मानते हुए उनका देहांत नगर के एक अस्पताल में हुआ।
पार्श्वभूमि और करियर की झलक
संध्या की शुरुआत 1950 के दशक के अंत में मराठी और हिन्दी दोनों सिनेमाओं में हुई। वह न केवल अपनी नाटकीय अभिनय शैली से बल्कि शास्त्रीय भारतीय नृत्य के गहन ज्ञान से भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं। उनके शुरुआती दिन ‘जाल बिन मछली, नृत्य बिन बिजली’ जैसी प्रयोगात्मक फिल्में थीं, जिनमें उन्होंने शारीरिक अभिव्यक्ति को शब्दों से आगे रखा।
प्रमुख फिल्में और यादगार भूमिकाएँ
उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में पिंजरामहाराष्ट्र शामिल है, जहाँ उन्होंने एक तमाशा कलाकार की भूमिका निभाई थी, जो स्कूल टिचर से प्रेम करती है। उस फ़िल्म की लहर आज भी महाराष्ट्र की गलियों में गूंजती है।
‘दो आँखें बारह हाथ’, ‘नवरंग’, और ‘झनक झनक पायल बाजे’ में उनका अभिनय परिपूर्ण था। विशेषकर ‘झनक झनक पायल बाजे’ में उनके नृत्य की लहर ने दर्शकों को झूमते‑झूमते गले लगा दिया, और वह कई सालों तक क्लासिक माना गया।
आखिरी संस्कार और सम्मान
संध्या के अंतिम संस्कार छत्रपति शिवाजी पार्क श्मशान में हुए। इस अवसर पर महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मंत्री अशिश शेलर और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने श्रद्धांजलि अर्पित की। अशिश शेलर ने अपने X (पहले ट्विटर) अकाउंट पर लिखा: “भावपूर्ण श्रद्धांजली! पिंजरा चित्रपट की प्रसिद्ध अभिनेत्री संध्या शांताराम जी के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद है।” अजीत पवार ने कहा, “मराठी सिनेमा ने एक अनुपम नर्तक‑अभिनेत्री खो दी है। उनका योगदान समय के साथ और भी अधिक मूल्यवान हो रहा है।”
इतिहास पर प्रभाव और भविष्य की आवाज़ें
संध्या की मृत्यु सिर्फ एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि मराठी सिनेमा के स्वर्ण युग का अंत भी दर्शाती है। कई युवा कलाकार और निर्देशक उनके शास्त्रीय नृत्य‑अभिनय को अपने कार्य में समाहित करने की आकांक्षा जाहिर कर रहे हैं। फिल्म विशेषज्ञ डॉ. मीणा सिसोडिया ने कहा, “संध्या ने जब ‘पिंजरा’ में नर्तकी की आत्मा को जीवंत किया, तब उन्होंने एक युग को जन्म दिया। उनका निधन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।”
आगे क्या? स्मृति और संरक्षण की दिशा
मराठी फिल्म संस्थाओं ने संध्या शांताराम की स्मृति में वार्षिक सिनेमा महोत्सव आयोजित करने की घोषणा की है। इसके अलावा, उनके कुछ पुरानी फ़िल्मों को डिजिटल रीमास्टरिंग के तहत पुनः सिनेमा घरों में दिखाने की योजना भी बनी है, ताकि नई पीढ़ी को उनका काम देख कर सीखने का मौका मिले।
मुख्य तथ्य
- मृत्यु: 4 अक्टूबर 2025, उम्र 94 वर्ष
- स्थान: मुंबई, भारत
- परिचित फ़िल्में: पिंजरा (1972), दो आँखें बारह हाथ, नवरंग, झनक झनक पायल बाजे
- अंतिम संस्कार: छत्रपति शिवाजी पार्क श्मशान, मुंबई
- मुख्य श्रद्धांजलि दातु: अशिश शेलर (सांस्कृतिक मंत्री), अजीत पवार (उपमुख्यमंत्री)

Frequently Asked Questions
संध्या शांताराम की सबसे यादगार फिल्म कौन सी है?
बहुसंख्य दर्शकों का मानना है कि ‘पिंजरा’ उनकी सबसे यादगार फिल्म है। 1972 में रिलीज़ हुई इस मार्मिक कहानी में उन्होंने एक तमाशा कलाकार की भूमिका निभाई, जिसने मराठी सिनेमा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया।
संध्या शांताराम के निधन से मराठी सिनेमा पर क्या असर पड़ेगा?
एक युग की समाप्ति के रूप में इस घटना को देखा जा रहा है। कई युवा कलाकार उनके शास्त्रीय नृत्य‑अभिनय को अपने काम में लागू करने का लक्ष्य रख रहे हैं, और संस्थाएँ उनका सम्मान करने के लिए वार्षिक महोत्सव की योजना बना रही हैं।
संध्या की पत्नी कौन थीं और उनका क्या योगदान था?
संध्या की पत्नी नहीं, बल्कि उनका पति वी. शांतराम थे, जो एक प्रख्यात फ़िल्म निर्माता और निर्देशक थे। उन्होंने कई क्लासिक फ़िल्में बनाई, जिनमें संध्या के साथ सहयोग भी शामिल है, जिससे भारतीय सिनेमा का रूप बदल गया।
संध्या शांताराम को कौन-से राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें सरकार द्वारा कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें 1992 में पद्मश्री और 2005 में डॉ. वराहगीर बर्मन कला सम्मान शामिल हैं। ये पुरस्कार उनके कला‑प्रति समर्पण और भारतीय सिनेमा में उनके अद्वितीय योगदान को मान्यता देते हैं।
क्या संध्या की फ़िल्में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध हैं?
हाँ, कई प्रमुख स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाताओं ने उनके क्लासिक फ़िल्मों को रीमास्टर करके ऑनलाइन उपलब्ध कराया है। हाल ही में ‘पिंजरा’ और ‘झनक झनक पायल बाजे’ को हाई‑डिफ़िनिशन में पुनः रिलीज़ किया गया है, ताकि नई पीढ़ी भी उनका आनंद ले सके।
Neha xo
अक्तूबर 5, 2025 AT 04:46संध्या जी की लम्बी उम्र में भी उनका उत्साह देखकर दिल खुश हो गया।
उन्होंने मराठी सिनेमा को नई दिशा दी।
उनके नृत्य में गहराई और भावनात्मक शक्ति का संगम था।
आज भी उनके क्लासिक फिल्में युवा दिलों में बसी हैं।
उनका योगदान कभी भी खो नहीं सकता।