केन्या में अशांति के पीछे की कहानी: राष्ट्रीय कर्ज और उसका दर्दनाक प्रभाव
जून, 26 2024केन्या में आर्थिक संकट और सामाजिक अशांति का संबंध
नैरोबी की सड़कों पर गूँजते विरोध प्रदर्शनों ने हाल ही में केन्या की गंभीर आर्थिक स्थिति की शिनाख्त कराई है। इन प्रदर्शनों का मुख्य कारण हाल ही में की गई करों में बढ़ोतरी है, जिससे आम नागरिकों पर अत्यधिक बोझ आ गया है। मौजूदा संकट का वास्तविक स्रोत देश का विशाल और लगातार बढ़ता हुआ $80 बिलियन का कर्ज है, जो देश की पूरी आर्थिक उत्पादन का लगभग 75% है।
ब्याज भुगतान और सरकार की चुनौती
केन्या की सरकार को अपने राजस्व का करीब 27% हिस्सा केवल ब्याज भुगतान में उपयोग करना पड़ रहा है। इसके कारण सरकार को अपने बुनियादी आवश्यकताओं और सेवाओं को पूरा करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस बढ़ते कर्ज की एवज में सरकार को कर्ज चुकाने के लिए नए उपाय अपनाने पड़ रहें हैं, जिससे देश में वित्तीय संकट और अधिक गहरा हो गया है।
अफ्रीका के अन्य देशों पर भी प्रभाव
केन्या का यह संकट केवल एक देश की समस्या नहीं है। अफ्रीका के आधे से अधिक देशों को ब्याज भुगतान में अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बहुत कम हो जाता है। इस स्थिति के परिणामस्वरूप, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक विकास सभी प्रभावित हो रहे हैं।
जोसेफ स्टिगलिट्ज़ की चेतावनी
वर्ल्ड बैंक के पूर्व चीफ इकनॉमिस्ट, जोसेफ स्टिगलिट्ज़ ने इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि इस संकट के दीर्घकालिक प्रभाव असाधारण हो सकते हैं, खासकर उन बच्चों के लिए जो आज शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। उनकी चेतावनी, यह संकट केवल वर्तमान पीढ़ी का मुद्दा नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी इसका असर हो सकता है।
महामारी का प्रभाव
मुख्य कारणों में कोविड-19 महामारी का महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है। महामारी ने पहले से ही कमजोर आर्थिक ढाँचे वाले देशों की वित्तीय स्थिति को और अधिक खराब कर दिया। इससे देशों को आवश्यक सेवाओं को प्रदान करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उनके वित्तीय संसाधनों में भारी कमी हो गई।
इस प्रकार, केन्या का आर्थिक संकट, राष्ट्रीय कर्ज और बढ़ते ब्याज भुगतान के साथ-साथ वैश्विक महामारी के प्रभाव का मिश्रित परिणाम है। यह समस्या केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि इससे सामाजिक और मानव विकास के हर पहलू पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। एक संतुलित और सतर्क वित्तीय नीति के बिना, इस तरह के संकट से उबरना अत्यंत कठिन होगा।