कुल्लू दशहरा 2024: 1661‑1662 से जारी अनूठा धार्मिक पर्व

कुल्लू दशहरा 2024: 1661‑1662 से जारी अनूठा धार्मिक पर्व सित॰, 30 2025

जब राजा जगत सिंह को गंभीर बीमारी ने घेर लेती है, तब बाबा पयहारी की सलाह से अयोध्या के भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाई गई और कुल्लू में स्थापित की गई – यही कहानी है जिसका जन्म कुल्लू दशहरा 2024ढालपुर मैदान, कुल्लू ने किया। यह उत्सव 13 अक्टूबर को शुरू हुआ और सात दिनों तक चलने वाला अंतरराष्ट्रीय समारोह हमेशा देश के बाकी हिस्सों के दशहरा समाप्त होते ही शुरू होता है।

इतिहास की परतें: 1661‑1662 से चलती परम्परा

तथ्य यह है कि ढालपुर मैदान में पहली बार दशहरा 1662 (कुछ स्रोत 1661) में मनाया गया। उस समय कुल्लू के राजा जगत सिंह ने सभी देवताओं को आमंत्रित कर रघुनाथ जी को मुख्य देवता घोषित किया। इस ऐतिहासिक ‘देव मिलन’ ने दशहरा को शूरवीर‑रामलीला से अलग, एक समन्वय‑उत्सव में बदल दिया।

समय‑सपने के साथ, इस परम्परा हर साल बदली लेकिन मूल भावना – रोग‑मुक्ति, सामुदायिक एकता और बहु‑देवता का संगम – बरकरार रहा।

इस साल का विस्तार: सात‑दिन का रंगीन मेला

उत्सव का पहला दिन दशहरा की देवी और मनाली की हिंदिबा कुल्लू में प्रवेश करती हैं, देवताओं को दर्शन देती हैं और राजघराने के सभी सदस्य असीस लेते हैं। प्रत्येक दिन विशेष रीतियों के साथ जारी रहता है:

  • दूसरे दिन रघुनाथ जी की रथयात्रा, जहाँ भक्त घंटी‑बिगुल की ध्वनि के बीच शरद‑रात्रि के आकाश को देख सकते हैं।
  • तीसरे दिन स्थानीय नर्तकियों का नटी‑नृत्य, जो पर्वत की हवा में झिलमिलाते परिधान में सजे होते हैं।
  • चौथे दिन 1000 से अधिक छोटी‑बड़ी देवी‑देवता की पालकी, जो ध्वनि‑विचित्र वाद्य यंत्रों के साथ शहर के मुख्य चौक से गुजरती है।
  • पाँचवें दिन पर्वत‑जनजातियों द्वारा अपने ग्रामीण देवता की झंकार‑भरी जुलूस।
  • छठे दिन विस्तृत सांस्कृतिक शो, जहाँ कश्मीरी नृत्य, हिमाचली लोकगान और शिल्प प्रदर्शन होते हैं।
  • सातवें दिन यानी दशमी, जहाँ पूरे शहर में रथ‑आगमन का शिखर दृश्य देता है, और सभी देवता एक साथ मिलकर अन्न‑भोजन का दावत साझा करते हैं।

स्थानीय महिला कलाकार ने कहा, “इस वर्ष हम अपने परिधान में हिमाचली कढ़ाई और झींक का नया रूप पेश कर रहे हैं, जिससे परेड और भी रंगीन बन रही है।”

स्थानीय संगठनों और सरकार की भूमिका

उत्सव की तैयारी कुल्लू नगर निकाय और हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा मिलकर की गई है। उन्होंने पिछले महीने से ही सुरक्षा, स्वच्छता, और यात्रियों के रहने‑सहने के इंतजाम किए हैं।

पर्यटन विभाग के अधिकारी श्री अमरनाथ सिंह ने बताया, “इस साल हम अंतरराष्ट्रीय फोकल पॉइंट बनाते हुए विदेशी पत्रकारों को आमंत्रित कर रहे हैं, ताकि कुल्ली दशहरा को वैश्विक मंच पर लाया जा सके।”

राष्ट्रव्यापी और अंतरराष्ट्रीय असर

कुल्लू दशहरा अब सिर्फ एक स्थानीय त्यौहार नहीं रहा; इसे ‘इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ दिव्य सांस्कृतिक एकता’ के रूप में भी पहचान मिली है। पिछले वर्ष 20 देशों के 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने इस जश्न में भाग लिया था। अर्थशास्त्री डॉ. रीना शर्मा का अनुमान है कि इस वर्ष स्थानीय व्यवसायियों की आय में लगभग 30 % की बढ़ोतरी होगी।

दिलचस्प बात यह है कि इस समारोह में रावण दहन नहीं होता, जिससे यह भारत के अन्य दशहरा से स्पष्ट रूप से अलग दिखता है – यह विविधता, सहिष्णुता और साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक बन गया है।

आगे का रास्ता: परम्परा का संवर्धन और टिकाऊ विकास

भविष्य में कुल्लू दशहरा को और अधिक पर्यावरण‑अनुकूल बनाने की योजना है। शहर ने प्लास्टिक‑मुक्त नीतियों को लागू करने का संकल्प लिया है और कई संगठित समूह ‘ग्रीन फेस्टिवल’ पहल के तहत बायोडिग्रेडेबल सजावट का उपयोग कर रहे हैं।

स्थानीय युवा वर्ग भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर इस त्यौहार को लाइव स्ट्रीम करके विश्व‑व्यापी दर्शकों तक पहुंचा रहा है। इस डिजिटल कदम से न केवल परंपरा सुरक्षित होगी, बल्कि युवा उद्यमियों को नए व्यापार अवसर भी मिलेंगे।

मुख्य तथ्य

  • इवेंट: कुल्लू दशहरा 2024
  • तारीख: 13 Oct 2024 – 19 Oct 2024 (7 दिन)
  • स्थान: ढालपुर मैदान, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश
  • आरंभिक वर्ष: 1661 / 1662
  • मुख्य आकर्षण: रघुनाथ रथयात्रा, 1000+ देवी‑देवता का जुलूस
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

कुल्लू दशहरा में रामलीला क्यों नहीं होती?

यह उत्सव 17वीं सदी में राजा जगत सिंह के रोग‑मुक्ति के बाद रघुनाथ जी को मुख्य देवता मानने से उत्पन्न हुआ था। इसलिए इसका फोकस शत्रु‑दहन नहीं, बल्कि विभिन्न देवताओं के मिलन पर रहता है।

उत्सव का आर्थिक प्रभाव कितने प्रतिशत तक पहुंचता है?

डॉ. रीना शर्मा के अनुसार, स्थानीय होटल, रेस्टोरेंट और हस्तशिल्प उद्योगों की आय इस वर्ष लगभग 30 % बढ़ने की उम्मीद है, जो कुल्लू की अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से सुदृढ़ करता है।

क्या विदेशी पर्यटक इस समारोह में भाग ले सकते हैं?

हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग ने अब इंटरनेशनल पासपोर्टधारियों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं; कई विदेशी पत्रकार और अनुसंधान संस्थान पहले ही पंजीकरण कर चुके हैं।

उत्सव में पर्यावरणीय पहल क्या हैं?

‘ग्रीन फेस्टिवल’ पहल के तहत प्लास्टिक‑मुक्त टेबलवेयर, बायोडिग्रेडेबल सजावट और कचरा पुनर्चक्रण स्टेशन लगाए गए हैं, जिससे जल‑वायु पदचिह्न को न्यूनतम किया जा रहा है।

कुल्लू दशहरा का मुख्य संदेश क्या है?

परस्पर सम्मान, सांस्कृतिक विविधता और सामुदायिक एकता – यह त्यौहार हमें यह सिखाता है कि विभिन्न देवता और लोग एक साथ मिलकर उत्सव बना सकते हैं, बिना किसी हिंसा के।

1 Comment

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    Rajbir Singh

    सितंबर 30, 2025 AT 20:14

    कुल्लू दशहरा का इतिहास वास्तव में अद्भुत है, परन्तु इस उत्सव की आधुनिक प्रस्तुति में कुछ अतिरेक देख रहा हूँ। यह कहा जाता है कि रघुनाथ को मुख्य देवता बनाया गया, परन्तु वास्तविक आचार‑व्यवहार में परम्परा की झलक कम है। स्थानीय लोग इस महोत्सव को आर्थिक लाभ के लिये उपयोग करते हैं, यह समझ में आता है। फिर भी, हमें मूल उद्देश्य-रोग‑मुक्ति और सामुदायिक एकता-को याद रखना चाहिए।

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