मुंज्या: एक हॉरर-कॉमेडी का समीक्षात्मक विश्लेषण
बॉलीवुड में हॉरर-कॉमेडी फिल्मों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन जब भी कोई ऐसी फिल्म आती है, तो दर्शकों की अपेक्षाएं ऊंची हो जाती हैं। 'मुंज्या', आदित्य सरपोतदार द्वारा निर्देशित और निरेन भट्ट द्वारा लिखित, ऐसी ही एक फिल्म है जो दर्शकों को डर और हास्य का मिश्रण प्रस्तुत करने का वादा करती है। यह फिल्म मैडॉक फिल्म्स की चौथी कवायद है, सुपरनैचुरल जेनर में 'स्त्री', 'रूही', और 'भेड़िया' के बाद। लेकिन क्या यह फिल्म दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती है, आइए जानते हैं।
कहानी की पृष्ठभूमि
फिल्म की कहानी बिट्टू (अभय वर्मा) पर केंद्रित है, जो अपनी माँ के ब्यूटी सैलून में काम करता है। बिट्टू की जिंदगी तब बदल जाती है जब उसने कोंकण गांव के बच्चे-राक्षस मुंज्या का सामना किया। मुंज्या, अपने अधूरे प्रेम और अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिए मानव बलि की तलाश में रहता है। मुंज्या केवल बिट्टू के लिए दृश्य है और उसे सताने में कोई कसर नहीं छोड़ता। इस संघर्ष की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी आगे बढ़ती है।
फिल्म के महत्वपूर्ण पात्र
फिल्म में बिट्टू की मां, जो मोना सिंह द्वारा निभाई गई है, एक ओवरप्रोटेक्टिव मां की भूमिका में नजर आती हैं। वहीं बिट्टू की बचपन की दोस्त, शर्वरी वाघ द्वारा निभाई गई, की स्थिति इस अनुभव में और जटिलताएं जोड़ती है। दोनों की कोशिश होती है कि किसी तरह इस अभिशाप से छुटकारा पाया जा सके, लेकिन हर बार वो मुंज्या के चंगुल में फंसते नजर आते हैं।
लचर वीएफएक्स और सीजीआई
फिल्म की तकनीकी पहलुओं में, वीएफएक्स और सीजीआई की कमी स्पष्ट दिखती है। मुंज्या का किरदार कई दफा हास्यप्रद लगने लगता है क्योंकि उसे सकारात्मकता के बजाए नकारात्मकता में सही ढंग से चित्रित नहीं किया गया है। इसकी वजह से डर का पहलू कमजोर पड़ जाता है। इसके विपरीत, मुंज्या का किरदार अधिकतर शरारती लगता है, जैसा कि 'मालेवोलेंट' होनी चाहिए थी।
अभिनय और संवाद
एक्टिंग के मामले में, अभय वर्मा ने अच्छा काम किया है, लेकिन स्क्रीनप्ले की कमजोरियों की वजहसे उनका प्रदर्शन भी समर्पित नहीं लग पाता। मोना सिंह और दूसरी सहायक पात्र भी अपना काम अच्छे से निभाते हैं, लेकिन कहानी की गहराई की कमी की वजह से उनका प्रयास भी बेअसर लगता है।
टेम्पो और प्रभाव
फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसके रनटाइम और कथा की दिशा में है। केवल 2 घंटों की इस फिल्म को भी काफी लम्बा लगता है। कथा की कमजोरियां, और पटकथा की दीर्घकालिकताओं की वजह से यह फिल्म अंत तक सही मायने में प्रभावित नहीं करती। फिल्म की थीम अपने से पहले आई 'स्त्री', 'रूही', और 'भेड़िया' से कहीं ज़्यादा उथली प्रतीत होती है।
निष्कर्ष
अंत में, मुंज्या एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पाती। अपनी कथानक की जटिलताओं और विशेष प्रभावों की कमी की वजह से यह फिल्म केवल सतही हास्य और हल्के डर तक सिमट कर रह जाती है। हालांकि, अभय वर्मा और अन्य सहायक कलाकारों का अभिनय सराहनीय है, लेकिन फिल्म की लिखावट और निर्देशन की कमजोरियों की वजह से उनका प्रयास व्यर्थ हो जाता है। फिल्म उपलब्द्ध हॉरर-कॉमेडी फिल्मों में एक और जोड़ के रूप में नजर आती है, लेकिन अलग पहचान बनाने में असफल होती है।
Rahul Tamboli
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