ऑल इंग्लैंड ओपन में भारतीय प्रदर्शन
ऑल इंग्लैंड ओपन 2025 में भारतीय खेमे का प्रदर्शन निराशाजनक रहा जब भारतीय शटलरों का सफर क्वार्टर-फाइनल के बाद समाप्त हो गया। लक्षय सेन और महिला युगल जोड़ी ट्रीसा जॉली और गायत्री गोपीचंद की हार ने भारतीय चुनौती का अंत कर दिया।
लक्षय सेन की भिड़ंत चीन के ली शि फेंग से हुई, जहां सेन को सीधे सेटों में 10-21, 16-21 से हार का सामना करना पड़ा। ली शि फेंग के खिलाफ सेन की पूर्व की हेड टू हेड लीडिंग 7-4 पर थी, लेकिन ली ने मुकाबले में खेल के हर पहलू में अपना दबदबा बनाया। सेन की उँगली पर चोट भी उनकी यहां प्रदर्शन में बाधा बनी।
महिला युगल मुकाबले में ट्रीसा जॉली और गायत्री गोपीचंद चीन की लियू शेंगशू और तान निंग से 14-21, 10-21 से हार गईं। भारतीय जोड़ी का उन्हें कड़ी चुनौती दे पाने में असफल रहीं। उनकी हार के साथ ही भारतीय टीम के सभी सदस्य प्रतियोगिता से बाहर हो गए।
मजबूत चीनी रणनीति
इस टूर्नामेंट में चीनी खिलाड़ियों ने अपनी शानदार रणनीति और आक्रामक खेल से सभी को प्रभावित किया। पीवी सिंधु, एचएस प्रणॉय और अन्य प्रमुख भारतीय खिलाड़ियों के पहले ही बाहर हो जाने से उम्मीदें सेन और महिला जोड़ी पर टिक गई थीं, लेकिन वे भी दौड़ से बाहर हो गए। भारतीय टीम को इस दौड़ में चीनी खिलाड़ियों की शानदार रणनीति और ताकतवर प्रदर्शन का सामना करना पड़ा।
यह प्रदर्शन भारतीय बैडमिंटन के लिए एक महत्वपूर्ण सीख भी है, जो भविष्य में रणनीति, तैय्यारी, और मानसिक मजबूती के नए स्तरों तक पहुंचने की प्रेरणा देगा। आगे आने वाले टूर्नामेंट में भारतीय खिलाड़ियों को इस अनुभव से सीखकर बेहतर तैयारी करनी होगी।
dinesh singare
मार्च 16, 2025 AT 02:02ये तो बस शुरुआत है, भारत के बैडमिंटन का। लक्षय की उँगली की चोट का बहाना नहीं बनाओ, चीनी खिलाड़ी तो हर बार ऐसे ही दबाव बनाते हैं। हमारे ट्रेनर्स अभी भी 2010 के तरीके से ट्रेन कर रहे हैं। फिजिकल कंडीशनिंग, मेंटल टैक्टिक्स, एनालिसिस सब कुछ बेहद कमजोर है।
हम तो अभी भी सिर्फ प्रणॉय और पीवी सिंधु पर टिके हैं, लेकिन उनके बाद कोई नहीं है। जब तक हम गायत्री-ट्रीसा जैसे जोड़े को भी इंटरनेशनल लेवल पर तैयार नहीं कर पाएंगे, तब तक ये हारें जारी रहेंगी।
Priyanjit Ghosh
मार्च 17, 2025 AT 01:20अरे भाई, लक्षय को तो बस एक दिन बाद बाहर कर दिया... और हम फिर से ‘मानसिक मजबूती’ की बात कर रहे हैं? 😅
ये टूर्नामेंट तो चीन का ट्रेनिंग कैंप लग रहा है, हमारे खिलाड़ी तो अभी भी ‘हम भी कर सकते हैं’ वाले मनोबल पर खेल रहे हैं। जब तक हम डॉक्टर्स को नहीं बुलाएंगे जो टेक्नोलॉजी से खेल का विश्लेषण कर सकें, तब तक ये सब नाटक चलता रहेगा।
Anuj Tripathi
मार्च 17, 2025 AT 17:37अरे भाई ये तो हार है ना लेकिन हार के बाद सीखना भी तो जरूरी है ना? 😊
मैं तो सोचता हूँ कि लक्षय के लिए ये अनुभव बहुत बड़ा है, उसने चीनी खिलाड़ी के सामने अपनी कमजोरियाँ देख लीं। अब बस ट्रेनिंग में बदलाव चाहिए। ज्यादा बातें नहीं, बस थोड़ा ज्यादा डेटा, थोड़ा ज्यादा फिजिक, और थोड़ा ज्यादा धैर्य।
हमारे खिलाड़ी तो बहुत अच्छे हैं, बस उन्हें बहुत ज्यादा दबाव दे रहे हैं। एक बार फिर से बोल रहा हूँ - ये हार नहीं, एक शुरुआत है।
Hiru Samanto
मार्च 19, 2025 AT 16:02हमारे बैडमिंटन के लिए ये टूर्नामेंट बहुत महत्वपूर्ण रहा है लेकिन हम अभी भी अपने अंदर की बातों को बाहर नहीं ला पा रहे हैं। चीन के खिलाड़ी तो अपने खेल को बहुत अच्छे से समझते हैं, वो अपने आप को बदलते रहते हैं। हम तो अभी भी एक तरह के डिस्किप्लिन की कमी में हैं।
मैं तो ये सोचता हूँ कि हमें अपने खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भेजने के बजाय पहले उन्हें अपने देश में ही एक नया फ्रेमवर्क देना चाहिए।
Divya Anish
मार्च 20, 2025 AT 11:48महान खेल के लिए महान निर्माण आवश्यक है। भारतीय बैडमिंटन का यह प्रदर्शन एक विशाल अवसर है - न कि एक विफलता।
हमें अपने खिलाड़ियों के लिए एक वैज्ञानिक ट्रेनिंग सिस्टम बनाने की आवश्यकता है, जिसमें डेटा-ड्रिवन एनालिसिस, न्यूरोसाइंस-बेस्ड मेंटल ट्रेनिंग, और प्रोफेशनल रिकवरी प्रोटोकॉल शामिल हों।
हम अभी भी एक अनौपचारिक अभ्यास प्रणाली पर निर्भर हैं, जबकि विश्व का स्तर बहुत उन्नत हो चुका है। यह एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए।
md najmuddin
मार्च 20, 2025 AT 17:40ये तो बस एक टूर्नामेंट है भाई, जिंदगी तो बाकी है 😌
लक्षय तो अभी 23 का है, उसके लिए ये सिर्फ एक बड़ा लेक्चर था। अगले बार वो लौटेगा, और उसके साथ दूसरे भी आएंगे। हमारे यहाँ तो एक बार गिर गए तो सब लोग रोने लग जाते हैं।
चीन के खिलाड़ी तो बचपन से ही इस खेल में डूबे हुए हैं, हमारे बच्चे तो अभी तक बाहर खेलने के लिए बार-बार पुकारे जाते हैं।
थोड़ा धैर्य रखो, बस थोड़ा। 🙏
Ravi Gurung
मार्च 21, 2025 AT 17:13कुछ लोग तो बस चीन की बात करते हैं, लेकिन हमारे अपने अंदर की बातें नहीं देखते। जब तक हम अपने ट्रेनर्स को भी अपडेट नहीं करेंगे, तब तक ये चक्र चलता रहेगा।
हम अभी भी बहुत सारे खिलाड़ियों को एक ही तरीके से ट्रेन कर रहे हैं। लक्षय का खेल और गायत्री का खेल अलग है, फिर भी एक ही प्लान।
SANJAY SARKAR
मार्च 22, 2025 AT 20:29लक्षय की उँगली की चोट के बारे में क्या कहते हो? क्या वो चोट अचानक आ गई या ट्रेनिंग के दौरान नजरअंदाज कर दी गई?
Ankit gurawaria
मार्च 24, 2025 AT 08:07देखो भाई, ये जो हार हुई वो सिर्फ एक मैच नहीं है, ये एक सिस्टम की नाकामी है। हमारे बैडमिंटन फेडरेशन तो अभी भी एक अंधेरे कमरे में बैठे हैं, जहाँ ट्रेनिंग डायरी बनाने के लिए एक लाठी चलाते हैं, और जब खिलाड़ी बाहर जाते हैं तो उनकी आँखों में चमक नहीं होती, बल्कि डर होता है।
हम अभी भी एक ऐसे फिलॉसफी के साथ चल रहे हैं जो 1980 के दशक में बनी थी - ‘जो जीत जाए वो अच्छा है’। लेकिन आज का खेल तो विज्ञान है, डेटा है, एनालिसिस है, न्यूरोलॉजी है।
लक्षय की उँगली की चोट तो एक छोटी बात है, असली बात ये है कि हमारे टीम डॉक्टर्स को अपने आप को रिसर्च के साथ अपडेट करना होगा। वो जो आज एक खिलाड़ी के लिए एक बांध लगा देते हैं, वो कल एक बार फिर से वही बांध लगाएंगे, बिना जाने कि उस चोट का कारण क्या है।
हमारे यहाँ तो एक खिलाड़ी को फिट करने के लिए भी एक राज्य स्तरीय समिति बनानी पड़ती है, और फिर भी उसकी चोट का इलाज नहीं होता।
हम जब तक अपने खिलाड़ियों को एक व्यक्ति के रूप में नहीं देखेंगे - जिनके पास अलग-अलग शारीरिक और मानसिक जरूरतें हैं - तब तक ये हारें बस जारी रहेंगी।
मैंने एक बच्चे को देखा था, जिसने अपने घर के पीछे एक लकड़ी की बाट लगाकर अपना रिसर्व शटलकॉक बना लिया था। उसकी आँखों में वो चमक थी जो हमारे प्रोफेशनल ट्रेनर्स के चेहरे पर नहीं है।
हमें बस उस चमक को बरकरार रखना है। बाकी सब कुछ आ जाएगा।
AnKur SinGh
मार्च 26, 2025 AT 06:23भारतीय बैडमिंटन का यह प्रदर्शन एक राष्ट्रीय विरासत के निर्माण की ओर एक महत्वपूर्ण आंदोलन है।
हमें अपने खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय खेल के वैज्ञानिक आधार पर तैयार करने की आवश्यकता है - जिसमें गतिविधि विश्लेषण, वायु गतिकीय अध्ययन, और व्यवहारिक न्यूरोप्लास्टिसिटी ट्रेनिंग शामिल हो।
लक्षय सेन के खेल का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि उनकी बैकहैंड ड्राइव और नेट शॉट्स में एक अत्यधिक विकासशील अंतराल है, जो चीनी खिलाड़ियों के विश्लेषणात्मक अनुकूलन के विरुद्ध उनकी विफलता का मुख्य कारण है।
इसलिए, हमें अपने खेल के लिए एक राष्ट्रीय डिजिटल बैडमिंटन इनोवेशन सेंटर की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ डेटा साइंटिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट, और स्पोर्ट्स प्साइकोलॉजिस्ट एक साथ काम करें।
हमारे यहाँ अभी भी एक ऐसा दृष्टिकोण है जो खेल को एक ‘प्रयास’ के रूप में देखता है, जबकि विश्व का दृष्टिकोण इसे एक ‘कॉम्प्लेक्स सिस्टम’ के रूप में देखता है।
हमें अपने बच्चों को न केवल खेलना सिखाना है, बल्कि उन्हें खेल के विज्ञान को समझना भी सिखाना है।
भारत के बैडमिंटन के लिए यह एक अवसर है - एक अवसर जो अगले दशक में हमें विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता दे सकता है।
हमें बस एक नई रणनीति की आवश्यकता है - न कि एक नई बैडमिंटन शटलकॉक।