जब बात डुअल डिस्प्ले, दो स्क्रीन या एक स्क्रीन के दो भागों को एक साथ इस्तेमाल करने की तकनीक. इसे अक्सर द्वि‑स्क्रीन भी कहा जाता है, तब सोचते हैं कि कौन‑से डिवाइस इसको संभाल पाएँगे। आज‑कल का स्मार्टफोन, हाथ में फिट, इंटरनेट और ऐप्स चलाने वाला डिवाइस और लैपटॉप, पोर्टेबल कंप्यूटर जिसे काम और मनोरंजन दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है डुअल डिस्प्ले को अपना रहे हैं, क्योंकि इससे मल्टीटास्किंग, एक ही समय में कई काम करने की क्षमता आसान हो जाती है। छोटे टैबलेट या फोल्डेबल डिवाइस भी इस तकनीक को अपनाते हैं, जिससे टैबलेट, एक बड़े स्क्रीन वाला पोर्टेबल गैजेट उपयोगकर्ता अधिक उत्पादक बने हैं।
पहला फायदा है उत्पादकता में बढ़ोतरी. दो स्क्रीन पर आप एक ओर दस्तावेज़ खोल सकते हैं और दूसरी ओर चैट या ई‑मेल देख सकते हैं, बिना एक‑दूसरे को छिपाए। दूसरा, रिफ्रेश‑रेट का ध्यान रखना ज़रूरी है; 90 Hz से ऊपर की रिफ्रेश‑रेट वाली स्क्रीन में स्क्रॉल स्मूद रहता है और आँखों पर तनाव कम होता है। तीसरा, बैटरी लाइफ पर असर पड़ता है—दो स्क्रीन का मतलब दो बार पावर खपत, इसलिए डुअल डिस्प्ले वाले डिवाइस में अक्सर बड़े बैटरी पैक या पॉवर‑ऑप्टिमाइज़्ड सोफ़्टवेयर मिलते हैं। चौथा, यूज़र इंटरफ़ेस (UI) को दो हिस्सों में बाँट कर डिज़ाइन किया जाता है, जिससे एप्लिकेशन जल्दी खुलते हैं और टच रिस्पॉन्स तेज़ रहता है।
इन फायदों की वजह से अब कई ब्रांड अपने फ्लैगशिप फ़ोन में डुअल स्क्रीन पेश कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, एक लोकप्रिय फ़ोन कंपनी ने 2024 में 7‑इंच मुख्य स्क्रीन के साथ 3‑इंच छोटा सेकंड स्क्रीन जोड़ दिया, जहाँ नोट्स, कॉल‑रिसीवर या सोशल फ़ीड तुरंत दिखते हैं। इससे उपयोगकर्ता 30 % तक समय बचाते हैं, जैसा एक उपयोगकर्ता सर्वे में दिखा। इसी तरह, कुछ लैपटॉप में 14‑इंच की मुख्य डिस्प्ले के नीचे 6‑इंच की टच‑स्क्रीन होती है, जहाँ डाक्यूमेंट स्कैन या क्लिपबोर्ड मैनेजमेंट होती है।
डुअल डिस्प्ले के तकनीकी पहलू भी दिलचस्प हैं। स्क्रीन को जोड़ने के लिए मिक्रो‑LED, OLED या LCD पैनेल का इस्तेमाल किया जाता है, और कनेक्शन के लिए हाई‑स्पीड इंटिग्रेटेड सर्किट (IC) आवश्यक होता है। यह IC दोनों स्क्रीन के रिफ्रेश‑साइकल को सिंक्रोनाइज़ करता है, जिससे लैग नहीं रहता। एंटी‑ग्लेयर कोटिंग और एडेप्टिव ब्राइटनेस कंट्रोल भी दो स्क्रीन पर समान प्रकाश स्तर रखता है, जिससे बाहरी प्रकाश में भी पढ़ना आसान हो जाता है।
डुअल डिस्प्ले के उपयोग क्षेत्र बहुआयामी हैं। व्यवसायियों के लिए दो स्क्रीन पर एक साथ स्टॉक चार्ट और ई‑मेल खोलना सुविधाजनक है। विद्यार्थी नोट‑टेकिंग के दौरान एक स्क्रीन पर वीडियो और दूसरी पर टेक्स्ट नोट्स रख सकते हैं। गेमर्स को ड्यूयल स्क्रीन में मैप या चैट विंडो दिखाने से गेमिंग एक्सपीरियंस में सुधार मिलता है। साथ ही, रिमोट‑वर्क के दौर में वीडियो कॉल और प्रेजेंटेशन को एक ही डिवाइस में संभालना रिवाज़ बन गया है।
हालाँकि, डुअल डिस्प्ले अपनाने से कुछ चुनौतियाँ भी आती हैं। दो स्क्रीन का वजन बढ़ता है, इसलिए हल्के डिवाइस बनाना कठिन हो जाता है। डिज़ाइनर को UI को दो भागों में बाँटने के लिए नई लेआउट रणनीति अपनानी पड़ती है, नहीं तो उपयोगकर्ता भ्रमित हो सकते हैं। इसके अलावा, सॉफ़्टवेयर सपोर्ट जरूरी है; सभी एप्लिकेशन डुअल स्क्रीन मोड को नेेटिवली नहीं समझते, जिससे कुछ फ़ीचर सीमित रह सकते हैं।
भविष्य की बात करें तो डुअल डिस्प्ले अधिक फोल्डेबल और रिवर्सेबल डिज़ाइन में विकसित हो सकता है। 5G और एआई (AI) की बढ़ती क्षमताओं के साथ, डुअल स्क्रीन पर रीयल‑टाइम अनुवाद, ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) ओवरले और स्मार्ट नोटिफिकेशन का इंटेग्रेशन संभव हो सकता है। कई स्टार्टअप यह दावा कर रहे हैं कि आने वाले कुछ वर्षों में डुअल डिस्प्ले ही मानक बन जाएगा, जैसे अब सिंगल स्क्रीन स्मार्टफ़ोन आम हो गया।
तो अगर आप अपना काम तेज़, मनोरंजन सहज और बैटरी उपयोग समझदारी से करना चाहते हैं, तो डुअल डिस्प्ले वाले डिवाइस पर एक नज़र जरूर डालें। नीचे आप विभिन्न सेक्टर में इस फीचर के विभिन्न पहलुओं को कवर करने वाले लेखों की सूची पाएँगे—जैसे नवीनतम स्मार्टफ़ोन मॉडल, लैपटॉप अपडेट, टैबलेट रिव्यू और मल्टीटास्किंग टिप्स। इन पोस्टों को पढ़कर आप तय कर पाएँगे कि डुअल डिस्प्ले आपके लिए सही विकल्प है या नहीं।