अगर आप रोज़मर्रा की चीज़ें देखते हैं तो समझेंगे कि रसायन हर जगह मौजूद हैं। प्लास्टिक, दवाइयाँ, उर्वरक या सौंदर्य प्रसाधन‑इन सबका मूल स्रोत केमिकल्स इन्डस्ट्री है। इस पेज पर हम आपको बतायेंगे कि भारत में इस उद्योग की स्थिति क्या है, कौन‑से बदलाव आए हैं और आगे क्या संभावनाएँ खुल रही हैं।
2023‑24 तक के आंकड़े दिखाते हैं कि रासायनिक उत्पादन भारत के जीडीपी में लगभग 7 % जोड़ रहा है और लाखों लोगों को रोज़गार दे रहा है। पेट्रोकेमिकल, उर्वरक और फ़ार्मास्युटिकल तीन बड़े खंड हैं जो कुल आउटपुट का आधा से अधिक हिस्सा बनाते हैं। पेट्रोलियम से निकाले जाने वाले एथिलीन, प्रोपीलीन जैसे बेसिक केमिकल्स को आगे प्रोसेस कर प्लास्टिक या रबर बनते हैं। इसी तरह उर्वरक उद्योग में नाइट्रोजन‑आधारित उत्पादों की माँग खेती के बढ़ते उत्पादन लक्ष्य के साथ लगातार बढ़ रही है।
स्पेशलिटी केमिकल्स, यानी ऐसी चीज़ें जो हाई‑टेक या मेडिकल सेक्टर में काम आती हैं, भी तेज़ी से फली‑फूली हैं। एंटीबायोटिक, बायो‑केमिकल्स और इको‑फ़्रेंडली पेंट अब बड़े निर्यात आइटम बन गए हैं। सरकार ने 2022 के बाद कई नई नीतियाँ लागू कीं जिससे इन क्षेत्रों में निवेश आसान हो गया।
सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरणीय मानकों का पालन है। रसायनों के उत्पादन में गंदे पानी, वायु‑प्रदूषण या hazardous waste की समस्या अक्सर सामने आती है। इसलिए केंद्र ने "ग्रीन रसायन विज्ञान" को बढ़ावा देने वाले नियम बनाए हैं – जैसे कि कम‑टॉक्सिक वैरिएंट बनाना और रिसायक्लिंग तकनीक अपनाना। कंपनियां अब इन मानकों को पूरा करने के लिए R&D में निवेश कर रही हैं, जिससे नई टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है।
डिजिटल टूल्स का उपयोग भी इस उद्योग को बदल रहा है। IoT और AI की मदद से फैक्ट्री में ऊर्जा खपत कम होती है, प्रोडक्शन लाइन में दोष जल्दी पकड़े जाते हैं और सप्लाई चेन बेहतर बनती है। छोटे‑मध्यम उद्यमों के लिए अब सरकारी फंडिंग आसानी से मिल रही है जिससे वे भी इन तकनीकों को अपना सकते हैं।
निर्यात की बात करें तो एशिया‑पैसिफिक, यूरोप और मध्य पूर्वी देशों में भारतीय रासायनिक उत्पादों का माँग लगातार बढ़ रहा है। विशेषकर बायो‑डिग्रेडेबल प्लास्टिक और फ़ार्मा‑इंट्रीटमेंट्स को उच्च प्राइस मिल रहा है। यह अवसर छोटे कंपनियों के लिए भी खुला है जो niche‑market में काम करना चाहते हैं।
जॉब मार्केट में भी बदलाव आ रहा है। रासायनिक इंजीनियर, पर्यावरण विशेषज्ञ और डेटा एनालिस्ट की मांग बढ़ी है। अगर आप इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं तो प्रोसेस सिमुलेशन, क्वालिटी कंट्रोल या नियामक अनुपालन जैसी स्किल्स सीखना फायदेमंद रहेगा।
भविष्य में देखेंगे कि हरित रसायन विज्ञान और सर्क्युलर इकॉनमी के मॉडल ज्यादा प्रमुख होंगे। कंपनियां अब सिर्फ प्रोडक्ट बनाकर बेचने की बजाए, उसके पूरे लाइफ़‑साइकिल को ध्यान में रखकर काम करेंगी। यही वह दिशा है जो भारतीय केमिकल्स इन्डस्ट्री को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए रखेगी।