जब कोई नया मंत्री, न्यायाधीश या सार्वजनिक पद पर नियुक्त होता है, तो उसे आधिकारिक रूप से काम शुरू करने के लिए शपथ लेनी पड़ती है। इस प्रक्रिया को शपथ ग्रहण कहा जाता है। भारत में यह इवेंट संविधान और विभिन्न कानूनों द्वारा निर्धारित है, इसलिए हर बार ठीक उसी फॉर्मेट में किया जाता है।
शपथ लेते समय व्यक्ति को एक छोटे से कागज या किताब (आमतौर पर संविधान) के सामने हाथ रखकर अपने पद की जिम्मेदारियों को स्वीकार करना पड़ता है। ये शब्द आमतौर पर "मैं शपथ लेता/लेती हूँ कि मैं इस पद को सत्यनिष्ठा और निष्ठा से निभाऊँगा/ऊंगी" होते हैं। एक बार यह वचन पूरा हो जाने के बाद ही वह आधिकारिक रूप से काम शुरू कर सकता है।
रिवाज़ में कई छोटी‑छोटी चीज़ें होती हैं: सबसे पहले शपथ लेनी वाले का नाम बुलाया जाता है, फिर वह मंच पर खड़ा होता है। अक्सर राष्ट्रपति या उच्च अधिकारी शपथ लेने वाले को संविधान या झंडे के सामने हाथ रखकर वचन देते हैं। उसके बाद एक छोटा सा संगीत या राष्ट्रीय गान बजता है, जिससे माहौल आधिकारिक और गरिमापूर्ण बनता है।
शपथ ग्रहण में आम तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस भी होती है। पत्रकार सवाल पूछते हैं, नई नीति या लक्ष्य के बारे में जानकारी लेते हैं। यही कारण है कि इस इवेंट को मीडिया बहुत कवरेज देता है – जनता को पता चलता है कि नया अधिकारी कौन से वादे कर रहा है।
हमें पिछले कुछ महीनों में कई शपथ ग्रहण समारोहों के बारे में पढ़ने को मिला – जैसे किसी राज्य के मुख्यमंत्री की शपथ, या नए IPS अधिकारी का रैंकिंग। हर बार रिपोर्ट में बताया जाता है कि सुरक्षा कैसे बढ़ाई गई, कौन‑कौन से बड़े नेता मौजूद रहे और जनता ने किस तरह प्रतिक्रिया दी।
एक खास बात यह भी देखी जाती है कि कई बार सामाजिक मीडिया पर शपथ ग्रहण की वीडियो वायरल हो जाती हैं। लोग इन क्लिप्स को शेयर करके नए अधिकारी के कार्यकाल की उम्मीदें व्यक्त करते हैं या फिर उनके पहले कदमों की समीक्षा करते हैं। इससे इवेंट का असर सिर्फ आधिकारिक नहीं, बल्कि जनमत निर्माण तक पहुँच जाता है।
अगर आप शपथ ग्रहण देखना चाहते हैं तो अक्सर इसका प्रसारण टेलीविजन या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर लाइव होता है। कुछ राज्य सरकारें इसे यूट्यूब चैनल पर भी स्ट्रीम करती हैं, जिससे दूर‑दराज़ के लोग भी भाग ले सकते हैं।
शपथ ग्रहण के बाद अधिकारी को अक्सर एक स्वागत समारोह में बुलाया जाता है जहाँ उनके परिवार और सहयोगी उन्हें बधाई देते हैं। यह छोटा‑छोटा सामाजिक पहलू जनता को दिखाता है कि इन बड़े पदों पर बैठने वाले भी इंसान होते हैं, जिनके पीछे सपोर्ट सिस्टम होता है।
कभी‑कभी शपथ के बाद तुरंत ही नई नीति या योजना की घोषणा हो जाती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शपथ केवल औपचारिक नहीं, बल्कि कार्रवाई का पहला कदम भी है। इसलिए समाचार में इस इवेंट को खास महत्व दिया जाता है।
शपथ ग्रहण में सुरक्षा बहुत कड़ी रहती है – पुलिस, सीसीटीवी और कभी‑कभी ड्रेस्ड गार्ड्स पूरे मैदान को घेरते हैं। यह दर्शाता है कि देश के महत्वपूर्ण पदों को लेकर लोगों की जागरूकता बढ़ी हुई है और किसी भी अनैच्छिक घटना से बचने की कोशिश की जाती है।
संक्षेप में, शपथ ग्रहण केवल एक औपचारिक रीत नहीं बल्कि लोकतंत्र का वह हिस्सा है जहाँ जनता नए प्रतिनिधियों को आधिकारिक तौर पर मान्यता देती है। इस इवेंट के बारे में पढ़ते‑समझते आप न सिर्फ प्रक्रिया जानेंगे, बल्कि यह भी देख पाएँगे कि देश की राजनीति कैसे काम करती है।
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