रूसी आक्रमण के 1000 दिन और युक्रेन की प्रतिज्ञा
युक्रेन ने अपने राष्ट्र की अखंडता और आजादी की रक्षा में 1000 दिन पूरे कर लिए हैं, जब से 24 फरवरी, 2022 को रूस ने अपने सैन्य आक्रमण की पूर्ण पैमाने की शुरुआत की थी। इस मौके पर युक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा कि युक्रेन कभी भी रूसी आक्रमण के सामने नहीं झुकेगा। उन्होंने कहा कि युक्रेनी प्रतिरोध ने यह सिद्ध कर दिया है कि रूस की त्वरित विजय की योजनाएं विफल हो गई हैं।
इस संघर्ष के दौरान लाखों युक्रेनियों को अपने घर से बेदखल होना पड़ा है और हज़ारों नागरिकों की जान चली गई है। मानवता पर इस भयावह हमले ने युक्रेन में भारी आर्थिक और बुनियादी ढांचागत क्षति पहुंचाई है। विशेष रूप से, युक्रेन के ऊर्जा क्षेत्र को बार-बार निशाना बनाया गया है, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था और जनजीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन
अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा युक्रेन को महत्वपूर्ण मानवाधिकार और सैन्य सहायता प्रदान की जा रही है। यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की है। हालांकि सहायता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी चिंता है कि समय के साथ अंतरराष्ट्रीय ध्यान और समर्थन कम हो सकता है, जो कि मानवतावादी स्थिति को और बिगाड़ सकता है। विशेष रूप से गंभीर सर्दियों की चुनौतियों का युक्रेन अभी सामना कर रहा है।
यूरोपीय संघ ने 2014 से ही युक्रेन में अपनी मानवाधिकार सहायता प्रणाली सक्रिय की है और 2022 में इसे अधिक बढ़ाया गया है। इसके तहत विद्युत आपूर्ति बनाए रखने के लिए जेनरेटर और विशेष उपकरण भेजे गए हैं।
भविष्य की चुनौतियां और संकट
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2024 तक 14.6 मिलियन युक्रेनी लोगों को मानवाधिकार सहायता की आवश्यकता होगी। बच्चों की स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जिसमें लगभग 600 बच्चों की मौत हो चुकी है और 1600 से अधिक घायल हुए हैं। इनमें से 44% बच्चों में मानसिक तनाव के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को युक्रेन को समर्थन देने और रूसी आक्रमण के खिलाफ युक्रेन की जीत सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है। इस संकट के समाधान के लिए वैश्विक समर्थन न केवल युक्रेन के जनता के लिए बल्कि यूरोप और संसार की स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।
युक्रेन के सामर्थ्य और संकट में सदृश्यता के साथ उसकी यात्रा न केवल उस देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, बल्कि यह इस बात का भी उदाहरण है कि आधुनिक युग में एक छोटे देश की संघर्ष क्षमता कैसे बड़ी शक्तियों के आगे टिक सकती है। यह विश्व के बाकी देशों के लिए भी एक सबक है कि संयम और स्थिर संकल्प से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।
Hitender Tanwar
नवंबर 21, 2024 AT 04:57pritish jain
नवंबर 23, 2024 AT 00:02मानवता के संदर्भ में, यह संघर्ष केवल एक सैन्य विवाद नहीं है-यह एक नैतिक अभियान है। जब एक राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ता है, तो वह न केवल अपने लोगों के लिए लड़ रहा होता है, बल्कि उस विश्वास के लिए भी लड़ रहा होता है कि शक्ति का अधिकार नहीं, बल्कि न्याय का अधिकार ही विश्व व्यवस्था का आधार होना चाहिए।
Gowtham Smith
नवंबर 23, 2024 AT 12:44Shivateja Telukuntla
नवंबर 25, 2024 AT 03:57मैंने कभी यूक्रेन नहीं जाया, लेकिन मैं उनके दर्द को समझता हूँ। शायद यही बात है जो दुनिया को बदल सकती है-न सैन्य शक्ति, न राजनीति, बल्कि एक इंसान का दर्द।
Ravi Kumar
नवंबर 25, 2024 AT 16:35रूस को तो लगता है वो दुनिया का बादशाह है, लेकिन दुनिया अब उसकी बात नहीं मानती। यूक्रेन ने साबित कर दिया कि जब इंसान अपने घर के लिए लड़े, तो उसकी आत्मा अजेय हो जाती है।
हम भारतीय लोग अक्सर बोलते हैं 'अहिंसा', लेकिन क्या अहिंसा तब भी है जब तुम्हारे घर पर बम गिर रहा हो? नहीं। युक्रेन ने बताया कि जब आपकी ज़िंदगी खतरे में हो, तो लड़ना इंसानियत है।
हमें अपनी चुप्पी से अपनी नींद नहीं, बल्कि अपनी इंसानियत बचानी है। ये लड़ाई हम सबकी है। अगर आज यूक्रेन हार गया, तो कल हमारे देश के लिए भी ये खतरा बन जाएगा।
दुनिया अभी भी जाग रही है। अगर तुम अब भी चुप हो, तो तुम भी उस खतरे का हिस्सा बन रहे हो।