जब हम बात करते हैं मनमोहन सिंह, भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री और आर्थिक उदारीकरण के मुख्य कारीगर. साथ ही उन्हें डॉ. मनमोहन सिंह के नाम से भी जाना जाता है, तो हम समझते हैं कि उनका कार्यक्षेत्र केवल राजनैतिक ही नहीं, बल्कि वित्तीय और नीति‑निर्माण तक विस्तृत है। उनकी पहलें भारतीय अर्थव्यवस्था को तेज गति से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण रही हैं, और आज भी उनके निर्णयों की चर्चा सतही नहीं रहती।
एक तरफ आर्थिक नीति, देश की वित्तीय दिशा निर्धारित करने वाला मुख्य ढाँचा उनकी पहचान है। दूसरा प्रमुख घटक है बजट, वार्षिक वित्तीय योजना जो राजस्व और खर्च को संतुलित करती है, जिसके तहत उन्होंने कर सुधार और सार्वजनिक निवेश को नई दिशा दी। तीसरा महत्वपूर्ण सम्बंधित विषय भारतीय राजनीति, देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और गठबंधन प्रणाली है, जहाँ उनकी नीतियों ने कई पार्टी को नई रणनीति अपनाने पर मजबूर किया। इन तीनों एंटिटीज़ के बीच का लिंक स्पष्ट है: आर्थिक नीति बुनियादी ढाँचे को तय करती है, बजट उसे वित्तीय संसाधनों से सशक्त बनाता है, और भारतीय राजनीति इस पूरे प्रक्रिया को राजनीतिक समर्थन देती है। इसके अलावा, मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर कई बड़े सुधारों को लागू किया। उन्होंने 1991 में विदेशी निवेश पर लगाई रोक हटाई, जिससे विदेशी पूँजी प्रवाह में वृद्धि हुई और कई नई उद्योगों का उभार हुआ। उनका दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम था कर प्रणाली को सरल बनाना, जिससे जटिल आयकर नियमों को सहज बनाया गया और टैक्स कलेक्शन में सुधार हुआ। तीसरा प्रमुख योगदान था सूखा‑उपज योजना, जिसके तहत कृषि क्षेत्र में वित्तीय सहायता का विस्तार हुआ, जिससे किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
उनकी आर्थिक नीति ने भारत को वैश्विक व्यापार में प्रतिस्पर्धी बनाया। 1990 के दशक में निर्यात‑उन्मुख नीतियों ने वस्तु और सेवा निर्यात दोनों में दोहरी वृद्धि दी। बजट में प्रशिक्षण और कौशल विकास पर बढ़ा निवेश, युवा वर्ग को रोजगार के नए अवसर प्रदान किया। भारतीय राजनीति में उनका संतुलित दृष्टिकोण, गठबंधन सरकारों को स्थिरता प्रदान किया, जिससे नीति‑निर्माण में निरंतरता बनी रही। इन सभी कारकों ने मिलकर भारत की जीडीपी ग्रोथ को 6‑7% के इर्द‑गिर्द बनाये रखा, जबकि कई विकासशील देशों की दरें इससे नीचे थीं।
आज भी उनकी नीतियों का असर दिखता है। जब नई सरकारें वित्तीय वर्ष की शुरुआत करती हैं, तो अक्सर उनके द्वारा स्थापित ढाँचा और मानक देखे जाते हैं। आर्थिक नीति के तहत उठाए गए कदम, जैसे डिजिटल भुगतान का विस्तार, सीधे रोज़मर्रा की जिंदगी में परिलक्षित होते हैं। बजट में सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढाँचा पर फोकस, सामाजिक विकास के संकेतक बढ़ाने में मदद कर रहा है। और भारतीय राजनीति में उनका कार्य‑नैतिकता मॉडल, नई पीढ़ी के राजनेताओं को प्रेरित करता है।
नीचे आप विभिन्न लेखों में इन विषयों की विस्तृत जानकारी पाएँगे—चाहे वह आर्थिक सुधारों की गहरी समझ हो, बजट के प्रमुख बिंदु हों, या फिर राजनीति में उनका प्रभाव। इस संग्रह को पढ़कर आप यह जान पाएँगे कि कैसे एक शास्त्र के रूप में नीति, बजट और राजनीति आपस में जुड़ी हैं, और क्यों मनमोहन सिंह का नाम अभी भी आर्थिक चर्चा में अहम है। आगे के लेखों में हम इन पहलुओं को और विस्तार से देखते हैं।